Pakhi Jain

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लेखनी कहानी -28-Feb-2024

 आज की प्रतियोगिता 
विषय स्वैच्छिक
#साहित्य_समाज_का_दर्पण_है 
(निबंध)

#भूमिका :--  किसी भी विषय को विस्तार पूर्वक समझने हेतु आवश्यक है सर्वप्रथम उसकी परिभाषा को समझा जाए। --साहित्य,समाज और दर्पण का अर्थ  विद्वानों की दृष्टि में क्या है ?
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी --"जो साहित्य मनुष्य को रोग,शोक,दरिद्र, अज्ञान तथा परमुखापेक्षिता से बचाकर  उसमें आत्मबल का संचार करता है,वह निश्चय ही अक्षय निधि है।"

बाबूगुलाबराय ने लिखा कि "साहित्य सभ्यता का मधुरतम फल है। इसी से सभ्यता का माप होता है.......साहित्य के साथ सदा मंगल और कल्याण की भावना लगी रही है........ साहित्य में विचार और भाव दोनों का समावेश रहता है।
#समाज :-- लोगों का ऐसा समूह जो किसी भी समाज/समुदाय  के व्यक्तियों के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता भाव रखते हैं। हर समाज के अपने कानून,नियम ,रस्मो-रिवाज होते हैं। सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था,जाल /ताने-बाने का नाम समाज है। जिसके सदस्यों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक अंर्तसंबंधों की जटिलता का बोध होता हैतथा जिसमें आचरण,सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि क्रियाएं सम्मिलित होती हैं।
#दर्पण:-- अँग्रेजी में लुकिंग ग्लास के नाम से जाने वाला काँच जो दोनों ओर से पारदर्शी होता है ।धातू से एक तरफ से लेप करने पर इसमें दिखने वाली छवि साफ और स्पष्ट दिखती है। इस पर पड़ने वाला बिंब  व्यक्ति को वही दिखाता है जो सामने होता है। 
#विषय-विस्तार :-एक समय भारत को ज्ञान का केंद्र कहा,समझा जाता था जिसके दो बड़े केंद्र आज खँडहर के रूप में अपना वैभव प्रदर्शित कर रहे हैं तक्षशिला और नालंदा।ज्ञान- विज्ञान,प्रोद्योगिकी,इतिहास,भूगोल,खगोल,औषधि(आयुर्वेद),कृषि,औजार (शस्त्र)खगोल,ज्योतिष,सामुद्रिकशास्त्र, अध्यात्म, वेद पुराण,संहिताओं ...आदि की रचना जितनी भारत में हुई अन्यत्र नहीं।और यही गौरवपूर्ण साहित्य था जो विदेशी आक्रांताओं की आँख की किरकिरी बना था।.जिसको जलाने के  साथ ही नावों द्वारा विदेशों में भी ले जाया गया। जिस समय,जिस काल में इस विस्तृत साहित्य का सृजन  हुआ,उस समय की अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, राजनैतिक स्थिति,धार्मिंकता,न्यायव्यवस्था, वेशभूषा-रहन-सहन आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं। न केवल गद्य साहित्य ,अपितु पद्य साहित्य में भी तत्कालीन समस्याओं, मानसिकता,विचारधारा का प्रतिबिंब परिलक्षित होता है। 
#साहित्य समाज का दर्पण का सबसे बड़ा उदाहरण प्रेमचंद साहित्य आज भी प्रत्येक रचनाकार का प्रेरक है। उनके साहित्य में हर वर्ग की पीड़ा,संत्रास,तत्कालीन सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक,जातीय,न्याय-व्यवस्था,सामंती प्रथा,दास-दासी प्रथा,पर्दा प्रथा,छुआछूत,दर्शन के साथ भ्रष्टाचार, दहेज ,आतंक,रईस ,निर्धन, दरिद्र,दलित सभी की समस्याओं -समाधान के दर्शन होते हैं। इन सब व्यथाओं ने साहित्य रूप में समाज का खाका हर पाठक वर्ग के समक्ष रखातभी हम अतीत  के समाज के यथा रूप दर्शन कर पाते हैं।
फैंटेसीं,जादुई,रहस्यमयी ,जासूसी कहानियाँ भी अपने समय का बेहतरीन सच है जिसे लुगदी साहित्य कहा जाता है। 
 प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि "जो पुस्तकें अधिक सोचने पर मजबूर करती हैं,वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं।"
#साहित्य का योगदान :--साहित्य समाज को सँस्कारित  करने के साथ जीवन-मूल्यों की भी शिक्षा देता है। कालखंड की विसंगतियाँ,विद्रूपताओं, विरोधाभासों को रेखांकित कर समाज को संदेश प्रेषित करता है जिससे समाज सुधारोन्मुख होता है।
#साहित्य_अतीत_से_प्रेरणा_लेता है,#वर्तमान_को_चिह्नित करता है और #भविष्य_का_मार्गदर्शन करता है।
#दर्पण मानवीय बाह्य विकृतियों और विशेषताओं का दर्शन कराता है वहीं साहित्य मानव की आँतरिक विकृतियों और विशेषताओं को चिह्नित करता है। समाज में.व्याप्त विकृतियों के निवारण हेतु अपेक्षित परिवर्तनों को भी साहित्य स्थान देता है।  साहित्य  में शील,नियम ,संयम ,परदुःखकातरता की प्रेरणा के साथ  ऐतिहासिकता  अतीत के दस्तावेजों में छिपी गल्तियों के परिणाम,रुढ़ियों ,प्रथाओं को स्थान मिलता है गद्य-पद्य  साहित्य की विभिन्न विधायें जीवन के आदर्श, उत्तम चरित्रों,गुणों पर प्रकाश डालतीं हैं तो  मन की भावुकता, निराशा से उपजे भावों और आस्था-भक्ति व परिस्थिति जन्य उपजी भावनाओं से परिचय कराती हैं। साहित्य अतीत के उस अपरिचित कालखंड व देश-विदेश की सभ्यताओं का दर्पण है।
उपसंहार:--उपरोक्त संक्षिप्त विवरण से स्पष्ट होता है कि साहित्य का यही योगदान है जो सीख देता है,सुधारवादी दृष्टिकोण रखता है,उन परिस्थितियों को सामने रखता है जिनके तहत विभिन्न घटनाएं घटी हैं,घट रही हैं और भविष्य में घट सकती हैं। भारतेंदु हरिश्चंद से लेकर वर्तमान तक अनेकों लेखक,कवि हुये हैं जिन्होंने अपने अपने समय के संघर्षों को रेखांकित और संरक्षित किया है।
अंत में महादेवी वर्मा के शब्दों में कहें तो"साहित्य को हम मानव की शक्ति-दुर्बलता,जय-पराजय,मित्र-शत्रु और जीवन-मृत्यु की कहानी कह सकते हैं।"
"साहित्य का फल उस व्यक्ति को मिलता है जो निश्चित अंतराल के पश्चात् अपनी मानसिक हलचलों को व्यक्त  करता है।"विमल मित्र

मनोरमा जैन पाखी

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3 Comments

Gunjan Kamal

01-Mar-2024 11:10 PM

👌👏

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Mohammed urooj khan

29-Feb-2024 03:54 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

29-Feb-2024 09:38 AM

Nice

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